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प꣡व꣢मान सु꣣वी꣡र्य꣢ꣳ र꣣यि꣡ꣳ सो꣢म रिरीहि णः । इ꣢न्द꣣वि꣡न्द्रे꣢ण नो यु꣣जा꣢ ॥१४४९॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

पवमान सुवीर्यꣳ रयिꣳ सोम रिरीहि णः । इन्दविन्द्रेण नो युजा ॥१४४९॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡व꣢꣯मान । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । र꣣यि꣢म् । सो꣣म । रिरीहि । नः । इ꣡न्दो꣢꣯ । इ꣡न्द्रे꣢꣯ण । नः꣣ । युजा꣢ ॥१४४९॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1449 | (कौथोम) 6 » 3 » 3 » 6 | (रानायाणीय) 13 » 2 » 1 » 6


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) पवित्रतादायक, (इन्दो) रस से सराबोर करनेवाले (सोम) आनन्द-रस के भण्डार जगदीश ! आप (नः युजा) हमारे सहायक (इन्द्रेण) मन द्वारा (नः) हमारे लिए (सुवीर्यम्) श्रेष्ठ वीरता से युक्त (रयिम्) ऐश्वर्य (रिरीहि) प्राप्त कराओ ॥६॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा, जीवात्मा और मन की मित्रता से ही मनुष्य चरम उन्नति करने में समर्थ होता है ॥६॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्मानं प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) पवित्रतादायक, (इन्दो) रसेन क्लेदक (सोम)आनन्दरसागार जगदीश ! त्वम् (नः युजा) अस्माकं सहायकेन (इन्द्रेण) मनसा [यन्मनः स इन्द्रः। गो० उ० ४।११।] (नः) अस्मभ्यम् (सुवीर्यम्) सवीर्योपेतम् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (रिरीहि) प्रापय। [रिणातिः—गतिकर्मा निघं० २।१४।] ॥६॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मजीवात्ममनसां सख्येनैव मानवश्चरमोन्नतिं कर्तुं पारयति ॥६॥